शब्द समर

विशेषाधिकार

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18.7.11

प्रलय का सामीप्य

















समुद्र आग है,
हिमालय मरुस्थल है,

जंगलों में तीखी धूप है,
जाड़ों में लू का ताप है,
पहाड़ों पर खाइयाँ हैं,
पृथ्वी रसातल में है,
चाँद जलता अंगारा,
सूरज अपने चरम पर है।
बादल बारिश का नाम सुनकर भाग रहे हैं।
नदियाँ रेत हैं,
कुएँ में सिर्फ मेंढक हैं,
तालाब खेल के मैदान हैं,
मछलियाँ टापू पर रहती हैं,
हैण्डपंप का चबूतरा ताश का अड्डा है
नल के टोटे प्रदर्शनी हैं
मटके संग्रहालय में संस्कृति के धरोहर हैं,
मन की शुद्धि में पूर्ण स्नान का भाव है,
आदमी मृगमारीचिका है
पिचकारी बंदूक है
एक बूँद के लिए जिंदा होता है विभत्स इतिहास युद्ध का।
कपड़े के निचोडऩ से साफ हो जाती है सब्जी,
ट्रेनों के नीचे का पानी परिष्कृत है
संसार चमकदार विकास है
वन शहर है
नमक की क्यारियाँ श्मशान हैं
चिडिय़ाघरों में सभ्यता विकसित हो गई हैं
मनुष्य पशुवत  और पशु  मनुष्य हो गये हैं
शेर शाकाहारी है,
जानवर खिलौने
मकड़ी अपने जाल में उलझती जा रही है
अब उसका विनाश निश्चित है...

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