शब्द समर

विशेषाधिकार

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3.7.11

जीवन की ज्यामिति


जीवन 
समान है,
गणित के उस 
तीन सौ साठ अंश की रेखा के,
जो 
अनन्त की यात्रा में,
नब्बे अंश के उत्थान से लेकर
एक सौ अस्सी अंश के पतन तक का कोण
करता है निर्मित अपने ही ऊपर|
यह 
रचता है,
सम्पन्नता के समकोण
विषमकोण विपन्नता का भी,
अपनी ही देह पर|
यह निर्माता है,
कर्तव्य, साहस व परायणता 
के त्रिभुज का|

यह रचनाकार है
धैर्य, धर्म, मित्र व नारी 
के चतुर्भुज
और
विकर्ण 
साधन और समग्रता का भी
जो एक-दुसरे को विच्छेद तो करते हैं,
किन्तु
योजित किये रहते हैं
सभी भुजाओं को,
और देते हैं शुद्ध परिमाप
सम्पूर्ण चतुर्भुज का|

रेखा
नहीं होती विचलित
तब भी,
जब
करती है वार कोई तिर्यक रेखा 
विकट परिस्थिति की|
उस तिरछे आक्रमण से
इस अनन्त-यात्री पर,  
जहाँ एक ओर बनता है 
बीस अंश के अक्षमता
व निर्बलता का न्यून कोण,
वहीं
सक्षमता और समर्थता
एक सौ साठ अंश का अधिक कोण बनाए,
प्रशस्त करती हैं मार्ग 
लक्ष्य प्राप्ति का|
एक सूक्ष्म बिन्दु के गर्भ से जन्मी
असीम आकांक्षा को 
पाने के लिए 
दौड़ रही है 
अनवरत, निरन्तर
रेखा 
जीवन के ज्यामिति की|

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