शब्द समर

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2.4.11

एक तारा जो होता मेरी जेब में


एक तारा जो होता मेरी जेब में,

आसमां की तरफ मैं नहीं देखता।

रोती रहतीं ये आँखें सदियों भले,

आंसुओं की तरफ मैं नहीं देखता।

उम्र भर मै मुखौटे बदलता रहा,

कई रूपों में लोहे सा ढलता रहा।

मोमबत्ती अभी तक आधी है क्यों?

मैं तो पूरा का पूरा पिघलता रहा।

शकल बदली है कितनी मेरी अब तलक,

आईने की तरफ मैं नहीं देखता।

भूख में पेट मैनें बांधे मगर,

रोटियां भीख की कभी खाई नहीं.

दुनिया उलझी रही रेखा गणितों में पर,

मैनें जाना इकाई-दहाई नहीं।

एक लत्ता भी होता जो ग़ैरों के पास,

खुद को नंगा कभी मैं नहीं देखता।

एक तारा जो होता मेरी जेब में,

आसमां की तरफ मैं नहीं देखता.

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