शब्द समर

विशेषाधिकार

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13.4.11

आत्महंता लहरें

बैठा झील के किनारे
सोच रहा है वह

ये लहरें क्यों उठती हैं
और खत्म हो जाती हैं
पहुंचकर साहिल पर

जिसकी तलाश में
भटकता है हर इंसान
वहीं मौत को गले
क्यों लगा लेती है ये तरंगे
जो देखने में हैं बहुत खूबसूरत, चंचल

क्या इनकी जिंदगी
केवल चलकर मर जाने की है......

1 टिप्पणी:

  1. फूल की भी जिंदगी चंद लम्हे की ही होती है खुशबू बिखेर कर वह झड़ जाता है....
    जिंदगी खुशबू की तरह होनी चाहिए न कि लम्बी खिंचने वाली...ये मेरा मानना है
    बहुत सुंदर रचना...

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