शब्द समर

विशेषाधिकार

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4.1.25

मेरी आवाज़ सुनो

मेरी आवाज़ सुनो,
सुनो, पीड़ा, व्यथा, कराह से भरा क्रन्दन मेरा।
सुनो, मेरी बिवाइयों, छालों, फफोलों से
बहते आँसुओं को।
सुनो, टूटे जबड़ों, बिखरी पसलियों, निकली अन्तड़ियों का रक्त प्रवाह मेरा।

कचरे गए आटे, तोड़े हुए चूल्हे, फेंक दी गईं रोटियों की भूख सुनो
लूटी गई बाल्टी, काटी हुई रसरी, रूँध दिए गए कुएँ की प्यास सुनों।
काटे हुए छज्जे, तोड़ी गई दीवार, खाली कराए गए आँगन की उजाड़ सुनो।

फाड़ी गई अँगिया को सुनो,
सुनो खरोंचे गए बदन को
और नोच दी गई इज़्ज़त की
चीत्कार सुनो।

सुनो विदीर्ण मस्तक की रेखाओं को,
भग्न कशेरुका की विपदाओं को सुनों
और सिर-से-पाँव तक लथपथ
निर्दय लाठी की मार को सुनो।

सुनो बिना मूल्यांकन की विफलता को,
युवावस्था की असफलता को सुनो
और सफलता हेतु उठाई हुई आवाज़ के लिए,
चेहरे पर किये गए
बूटों का प्रहार सुनो|

तुम सुनो
कि नहीं हो बहरे तुम,
देखो मुझे,
कि तुम्हारी आँखें भी हैं सही सलामत
करो कुछ
कि हाथ हैं बचे साबुत तुम्हारे
चलो साथ मेरे
कि जान है बची तुम्हारे पैरों में।

तुम विचारवान हो,
ज्ञानवान हो तुम,
तुम ही शक्तिशाली भी। 

मैं हाथ जोड़कर गला फाड़ कर
चीख-चीखकर रहा हूँ पुकार तुम्हें,
सुनो!
मेरी आवाज़ सुनो...

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