भूल द्वेष, हृद राग जगाएँ,
प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ।
गज देखो अब चिंघाड़ रहा,
वनराज कहीं हुंकार रहा,
भुजंगिनी के गान लहर में,
भुजंग कुण्डलि मार रहा।
जीवन का सुख इनमें पाएँ,
प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ।
कोकिल वन में कूक रही,
रति-काम हृदय में हूक रही,
लालायित पिपासु नयनों को,
देख मृगा, मृग मूक रही।
इनसे अपना हृदय मिलाएँ,
प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ।
ऋतुराज खड़े पट पीत लिए,
प्रणयी के संग नव गीत लिए,
नव-पल्लव वसना वसुधा में,
मकरन्द कुसुम जस मीत लिए।
हम द्वय से अब एकम हो जाएँ,
प्रिय आओ! गीत प्रणय के गाएँ।
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