शब्द समर

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13.2.23

ज़िन्दगी में कभी...

ज़िन्दगी के कभी कुछ लम्हें ऐसे हों कि-
सिर्फ़ मैं हूँ, और तुम हो,
सिर्फ़ मैं हूँ, और तुम हो।

ज़िन्दगी में दिखाई कभी कुछ यूँ दे कि-
नज़रें सिर्फ़ चार हों,
दो सिर्फ़ मेरी हों, दो सिर्फ़ तुम्हारी हों,
और इश्क़ बार-बार हो

ज़िन्दगी में कभी सुनाई कुछ यूँ दे कि-
लबों पे सरसराहट हो,
न तुम कुछ बोलो, न मैं कुछ बोलूँ,
बस भीगी-सी मुस्कुराहट हो।

ज़िन्दगी में कभी बातें कुछ ऐसी हों कि-
हर तरफ़ मदहोशी हो,
साँसों की साजें हों, ख़ामोशी की आवाज़ें हों,
सन्नाटों की सरगोशी हो।

ज़िन्दगी में हमेशा ऐसा रहे कि-
ऐसा इक़रार हो
मैं रहूँ, तुम रहो, और सिर्फ़ प्यार हो,
और प्यार बेशुमार हो।

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