संगीत के उस पार कोई
नहीं रहता,
सिवा निर्वात के|
नदी के उस पार,
एक गाँव बसता था;
समेटे हुए
बचपन से बुढ़ापे तक की
यात्रा,
और
अतीत से वर्तमान की
असंख्य स्मृतियाँ|
अतीत में जहाँ-
गाँव देहात था,
गाँववाले गँवार थे,
गँवारों में जीवन था,
जीवन की संस्कृति
थी,
संस्कृतियों की परम्परा
थी,
परम्परा में रातें
थीं,
रातों में रस था
रस में संगीत,
संगीत में आनन्द था|
फिर,
गाँव का मध्यकाल आया
काल में, विचार आया
विचार था- नगर का,
नगर में आकांक्षा थी,
आकांक्षा थी, विकास
की,
विकास में- आशा थी,
आशा से जन्मी लालसा,
लालसा, बढ़ी और लिप्सा
बनी
लिप्सा व्यावसायी थी
व्यावसाय था, नगर का|
गाँव नगर न बन पाया,
नगर, महानगर हो गया|
अब,
गाँव खो चुका है,
वह,
उजाड़ है, निर्जन है,
वीरान है
जहाँ-
नीरवता है,
निस्तब्धता है, सन्नाटा है|
इसीलिए,
नदी के उस पार कोई
नहीं रहता;
सिवा दिन-रात के-
ठीक ऐसे ही जैसे,
संगीत के उस पार कोई
नहीं रहता;
सिवाय निर्वात के|
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