शब्द समर

विशेषाधिकार

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30.11.22

कृष्णा की हँसी

यह जो मेरी खिलखिलाहट है, मुस्कुराहट है न?
यह नहीं है हँसी मात्र मेरी,
यह-
आषाढ़ का मेघ है,
सावन की हरियाली है,
भादों की कजरी भी है,
तो क्वार की क्यारी है|

कार्तिक की जगमगाती दीवाली
और मार्गशीर्ष की गुलाबी गुनगुनी धूप है ,
तो पौष का मकर, पोंगल लोहड़ी,
और माघ के वसन्त आहट है|

फागुन की रंग-बिरंगी पिचकारी है यह,
और है चैत्र के ढोल-नगाड़ों सहित खलिहान की खुशहाली,
वैशाख में यह नाचती बिहू और वैशाखी है,
तो जेठ में रिमझिम बरखा की तैयारी है|

मेरे माता-पिता जब भी मुझे ऐसे देखते हैं,
तो जी जाते हैं-छः ऋतुएँ,
बारहों महीने,

एक क्षण में एक युग की भाँति|

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