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17.10.20

पौरुष-प्रण

आज,

विक्रम संवत्सर

क्वार मास

शुक्ल पक्ष

प्रतिपदा को

नवरात्रि के आरम्भ पर

हम आर्यावर्त-संस्कृति के रक्षक

करते हैं प्रण

कि पश्चात् अब के

नहीं कहेंगे दुर्वचन किसी को,

जिससे असम्मानित हो कोई भी स्त्री,

नहीं कहेंगे अपशब्द किसी से,

जिसमें माँ-बहन, कन्या शब्द हो उल्लेखित

किसी भी प्रकार से|

 

ताकेंगे

न घूरेंगे,

न मारेंगे वासना से लिप्त चक्षु-बाण

किसी भी स्त्री को,

किसी मार्ग पर,

विद्यालय में,

हाट में,

न ही छुएँगे उसके

स्तन,

नितम्ब

या योनी चुपके से अवसर निकालकर|

 

कभी नहीं करेंगे सम्बोधित

किसी भी युवती को

जिसमें सम्बोधन हो,

माल,

सामग्री,

पटाखा इत्यादि

 

अपनी पत्नी का

नहीं करेंगे उपहास अब किसी भी सभा में,

कवि सम्मलेन में,

न ही,

बनाएँगे हास्य (चुटकुले) स्त्री जाति पर|

 

घर में नहीं बनाएँगे बंधक

अपनी पत्नी को,

न ही उसे करेंगे प्रतिबन्धित

रसोई मात्र तक,

और न ही

करेंगे किसी भी प्रकार का

हिंसक व्यवहार उनके साथ|

 

हम समस्त मनु-सन्तति

समस्त पुरुष

अपने ईष्ट-अभीष्ट

अपने ईश्वर

अपने सर्वप्रिय

और अपने पौरुष की शपथ लेते हैं कि

पश्चात् अब के

किसी भी

अबोध,

कन्या,

किशोरी,

युवती,

अधेड़,

वृद्धा

अर्थात् किसी भी स्त्री

का

बलात्कार नहीं करेंगे|

हम रघुकुल के अनुयायी,

श्री राम पथानुगामी 

अपने इस प्रण की 

प्राणोंपरान्त भी रक्षा करेंगे|

 

बस इतना ही सुना था कि

नींद टूट गई, और

समाचार पत्र उठाया तो

पढ़ा

“कल रात

छः दिन की शिशु,

तीन वर्ष की बालिका

चौदह वर्ष की नाबालिग

उन्नीस वर्षीय युवती

पैतालीस वर्ष की अधेड़ स्त्री

बानवे वर्ष की वृद्धा के साथ

अलग-अलग स्थानों पर हुए बलात्कार|

 मेरे मुँह से निकला इनकी ....

दुर्गा माता की जय|"


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