शब्द समर

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6.8.13

मौन प्रेम


प्रेम बीज उसके भी मन में
भाव वही मेरे अंतर में

मेरे लिए स्वप्न हैं उसके
वह भी बसी मेरे उर घर में

नयनों से तो बोल चुकी वह
मैंने भी कह दिया नज़र में

उसके बोल न फूटे अब तक
अधर सिले मेरे भीतर में

लज्जा-भय की लुका-छुपी है
दोनों लटके अभी अधर में

दोनों प्रेम पिपासे हृद के
लड्डू फूट रहे अंतर में.

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