वह बहुत
प्यासा था,
भूख से भी तड़प रहा था,
शायद वह ईद के चाँद की
तलाश कर कर रहा था।
भूख से भी तड़प रहा था,
शायद वह ईद के चाँद की
तलाश कर कर रहा था।
ईद का चाँद?
क्या तुम्हें मन्नत माँगनी है?
हाँ।
क्या तुम्हें मन्नत माँगनी है?
हाँ।
मैं ईद के
चाँद की तलाश में हूँ,
पर माँगने के लिए नहीं।
मन्नत के लिए
ज़बान में ताक़त भी तो
होनी चाहिए न बाबू साहब?
एक वक़्त की रोटी।
पता है आपको?
नहीं न?
यही तो मेरे ‘ईद का चाँद’ है,
जो कभी-कभी ही नज़र आती है।
साल भर में मेरे कितने रमजान हो जाते हैं,
पर माँगने के लिए नहीं।
मन्नत के लिए
ज़बान में ताक़त भी तो
होनी चाहिए न बाबू साहब?
एक वक़्त की रोटी।
पता है आपको?
नहीं न?
यही तो मेरे ‘ईद का चाँद’ है,
जो कभी-कभी ही नज़र आती है।
साल भर में मेरे कितने रमजान हो जाते हैं,
यह तो मुझे
भी नहीं पता,
आप मन्नत माँगने के लिए कह रहे हैं।
आप मन्नत माँगने के लिए कह रहे हैं।
वह फूसों का ढेर देख रहे हैं आप?
मैं वहीं रहता हूँ।
वही मेरा घर है।
पूरा परिवार जब पूरी तरह सो चुका,
तब मैं जीने के लिए
बाहर आया हूँ।
सुना है
आप लोग
चाँद पर पहुँच गये हैं,
जो बहुत दूर है,
पर मेरे लिए तो एक कण दाना ही चाँद है।
कृष्ण के पिता ने
थाली में चाँद दिखा कर,
उसे फुसला लिया था,
जो बहुत दूर है,
पर मेरे लिए तो एक कण दाना ही चाँद है।
कृष्ण के पिता ने
थाली में चाँद दिखा कर,
उसे फुसला लिया था,
पर हम
रूठें भी तो किसके सामने?
अब उसकी
सें-सें की आवाज़
आने लगी थी।
बाबू साहब!
आने लगी थी।
बाबू साहब!
आप लोग तो पानी
भी खरीदते हैं,
क्या एक बूँद मयस्सर होगा?
मैं उसे वहीं छोड़ भागा।
आधे घंटे बाद पहुँचा,
खाने का कुछ सामान लेकर उसके घर में।
मेरा सब कुछ धरा का धरा रह गया,
क्योंकि
‘लाशें खाना नहीं खातीं’।
क्या एक बूँद मयस्सर होगा?
मैं उसे वहीं छोड़ भागा।
आधे घंटे बाद पहुँचा,
खाने का कुछ सामान लेकर उसके घर में।
मेरा सब कुछ धरा का धरा रह गया,
क्योंकि
‘लाशें खाना नहीं खातीं’।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें