तेरे हुस्न की तारीफ करूं,
ये मेरी की औकात नहीं.
लिखने को जो दे साथ जिंदगी भर,
कोई ऐसा कलम-दावत नहीं.
कहना चाहूँ मिलकर तुमसे,
तो इतनी बड़ी मुलाक़ात नहीं.
बखान करूँ अगर कसकर तुमको बांहों में,
तो इतनी भी लम्बी रात नहीं.
अब तुम्हें क्या लिखूं ऐ ‘मृगनयनी’,
‘विद्यार्थी’ के पास
कोई बात नहीं.
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