शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

6.3.12

कर्कश

















हे कर्कश!
तुम्हारी आह सुनकर भी 
लोग नहीं आते तुम्हारे समीप
क्योंकि वे 
खाते हैं भय इस बात की 
कि 
कहीं तुम्हें सहानुभूति देते-देते 
उन्हें तुमसे प्रेम न हो जाय।
तुम कर लो लाख शहद का पान
तुम कर लो चाहे जिह्वा में 
कितना भी घृत लेपन
उड़ेल लो चाहे
पूरा मटका छाछ का अपने उदर में
किन्तु
करेले को शक्कर में घोल देने से 
उसकी कड़वाहट नहीं जाती।  
अतः 
तुम मनुष्य होकर भी
रहते हो सदैव दूर 
मानवों से।
न तुम त्याग सकते 
सत्य वक्ता होने की कड़वाहट
न 
चापलूसों से घिरे लोग 
कर पाते हैं तुम्हें स्वीकार
अतः 
संसार से तिरस्कृत तुम 
कष्ट में कराहते
पड़े मिल जाते हो  
सड़क के किनारे कुर्सियों पर 
भूवनेश्वर की तरह।

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