शब्द समर

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9.11.25

मेरी ज़िन्दगी का मजमून

मेरी ज़िन्दगी का जो उनवान है, मज़मून भी वही है,
जैसा दिखता है दिल मेरा — मेरा ख़ून भी वही है।

मैंने अपनी महबूबा में ही देखा है ख़ुदा अपना,
जो बनी मोहब्बत मेरी — मेरी ख़ातून भी वही है।

तलवारें उठती रहीं यहाँ मेरे इश्क़ के ख़िलाफ़,
जिसने तोड़ा घरबार मेरा — अफ़लातून भी वही है।

घोंपे गये ख़ंजर मेरी पीठ में — मरहम भी मिले हैं,
जिसने दिया ज़हर मुझे — मेरा ख़ैर-ओ-ख़ून भी वही है।

अपने चाँद को चाहा मैंने इक चाँद से ज़ियादा,
वही बनी है उल्फ़त मेरी — मेरा जुनून भी वही है।

हर दुआ में जिसका नाम आता है, बड़े ही अदब से,
मेरी तिश्नगी वही है — और मेरा सुकून भी वही है।

मोहब्बत में दोस्ती का करार सिर्फ़ वफ़ा का है,
इश्क़ में मिटने की रीत वही — क़ानून भी वही है।

किसे इल्ज़ाम दूँ अब इस तन्हाई की साज़िश का,
जिसने छोड़ा था राह में — उसका ममनून भी वही है।