हम आदि से अब तक,
कन्दमूल की भाँति,
गड़े पड़े थे मिट्टी
के भीतर कहीं —
सघन वनांचलों,
पहाड़ों की अँधेरी
गुफाओं,
नदियों के किनारे,
बिना इस भान के
कि हम वनवासी हैं,
या है हमारा अस्तित्व
कुछ और भी।
हम प्रकृति
और वर्षा-जल पर आश्रित,
उसके ऋतुओं पर विश्वास
के साथ,
मौसमी रहे आए।
कालान्तर में,
हम पर पड़ी दृष्टि कुछ
भूखे सैलानियों की।
उन्होंने हमें खोद
निकाला,
आलू-अरबी की तरह।
और दिखाई हमें ब्रोकली
और गोभी
की सुन्दरता।
साथ ही किया प्रेरित,
प्राप्त करने को
सौन्दर्य उतना ही।
दिखाया गया स्वप्न —
निखारने को रंग हमारा,
कि
स्याह-धूसर वर्ण
बन जाएगा श्वेत और
चमकदार।
स्वभावानुसार, हम भी हुए मोहित,
और जीने की इच्छा हुई
बैंगन-भिण्डी की तरह।
जिस प्रकार नेनुआ-तोरई में
नहीं आने दिया जाता स्वाद कभी
कद्दू-लौकी का,
उसी प्रकार, हम भी नहीं बन पाए —
परवल, शिमला मिर्च, सेम बीज या मटर कभी।
सैलानियों की दिखाई
दुनिया को देखने,
शलजम, चुकन्दर की तरह
जैसे ही निकाला गर्दन
थोड़ा-सा —
हम काट दिए गए
मूली-गाजर की तरह,
और चीरे गए
पालक-चौंराई बनाकर।
हम काटे और चीरे ही गए
थे,
कि तभी ज़िन्दगी ने
हमें कूट दिया,
सोंठ और अदरक की तरह।
फिर कई लोग आए,
हमदर्द बनकर,
और हमारी ज़िन्दगी को
प्याज़ के छिलके की
तरह उतारने लगे,
नीछने लगे लहसुन की कली
बनाकर।
हमारी ज़िन्दगी में
भरी —
करेले की कड़वाहट,
और हरी मिर्च के
तीखेपन से
आँसू झरने की तरह बह
निकले।
और वे —
टमाटर, नींबू, में काला नमक मिलाकर,
लेने लगे चटखारे हमारे
दर्द का,
और बेचने लगे,
एवाकाडो के समाचार के रूप में|
तेज पत्ता की तरह
तड़के में पड़ने वाले हम,
कड़ाही में ही जलते
रहे,
पर कभी
धनिया पत्ती बन महक
नहीं पाए।
तेल में सबसे पहले
खौला देने के बाद भी,
अपने होने का
न ही किसी को एहसास
करा पाए।
हम जो चले थे —
मशरूम बनकर,
अपनी छतरी को आसमान
में फैलाने,
एक वर्ग आज भी है
जो हमें कुकुरमुत्ता
ही कहता है,
खाना भी नहीं
चाहता,
और कटहल में लगे काँटे की ही भाँति
हम उपेक्षित रहे आए|
सदियाँ बीत गईं —
हमें खोदे हुए,
निकाले हुए,
धोए हुए।
पर आज तलक हमें
न तो गोभी की सुन्दरता
मिली,
न ही ब्रोकली वाला
भाव।
हम आज भी आदिवासी कन्दमूल
की ही तरह
अपना भावहीन, अर्थहीन जीवन जी रहे
हैं।
और वे —
सब्ज़ियों का व्यापार
करके
करोड़पति बन चुके हैं।
इस कविता ने मिट्टी, प्रकृति और इंसान के बीच के अनकहे रिश्तों को इतनी खूबसूरती से बयान किया है कि हर शब्द आत्मा को झकझोर देता है। 🌿💔
जवाब देंहटाएंकुकुरमुत्ते बनकर भी आपने जीवन की सचाइयों और उपेक्षा की वेदना को जिस संवेदनशीलता से उकेरा है, वह सच में अद्भुत है। ✨🙏
रावेन्द्र अवस्थी