शब्द समर

विशेषाधिकार

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26.9.25

हे माधव!

जब श्याम मेघ भी सूखें हों,
और धरती हो ऊसर-बंजर,
जब पवन अग्नि की ज्वाला हो,
और वृक्ष दिखें निर्जर-जर्जर।

जब रात्रि गहन अँधेरी हो,
और जीवन आशा-हीन लगे,
जब मार्ग लगें भयकर सारे,
और वाणी भाषा-हीन लगे।

जब साथ न हो मैत्री कोई,
और एकल-जीवन वासी हो,
जब उल्लास पतित हो नेत्रों से,
और सर्वांग पूर्ण उदासी हो।

तब हाथ तुम्हारा आता है —
हे केशव! मेरे सखा, सुनो,
तब साथ तुम्हारा आता है —
हे माधव! तू ही दिखा, सुनो।

मातृ-पितृ का स्नेह मिला,
भ्राता-भगिनी से पूर्ण किया,
वसुधा-सम कुटुम्ब दिया,
जीवन-रस सम्पूर्ण दिया।

उजाड़, निर्जन उपवन में,
तुमने जो सुमन खिलाया है,
तन-मन से मैं तृप्त हुआ,
जीवन सम्पूर्ण ही पाया है।

कृष्ण दिया, कृष्णा दिया,
मधुवन को मधुमास दिया,
निर्मल-निश्छल हृदय दिया,
दिव्य शान्ति का वास दिया।

अब और न माँगूँ कुछ तुझसे —
ओ मोहन! मेरे मित्र, सुनो,
अनुसरण करूँ शरण तेरी,
और चित में तुम्हारा चित्र, सुनो।

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