हे नागराज!
तुम डसो ही मत।
मत न धँसाओ गरल युक्त दन्त,
किसी की देह में,
न करो विष-वमन ही,
अरि-शोणित में।
मैं कहता हूँ-
करो आचरण विपरीत
अपने व्यवहार के;
सरक जाओ चुपके से तब भी,
यदि पाओ आहट घोर संकट
की आसपास अपने।
तुम जियो स्वयं,
और जीने दो औरों
को,
बिना कोई हानि
पहुँचाए।
किन्तु,
सावधान!
जब तुम्हारी
शान्ति का
उठाने लगे अनुचित
लाभ कोई,
देने लगे त्रास
तुम्हें।
तब,
अपने त्राण के
लिए;
उठा लो सहस्र फण,
वासुकीनाथ की
भाँति मारो फुफकार,
डस लो तक्षक की
भाँति से फूलों से निकल कर,
चुभा दो समस्त दन्तपंक्तियाँ
एक साथ,
और पलट जाओ वहीं
पर,
उछर दो कालकूट शत्रु की रक्त-शिराओं में।
मैं तो कहता हूँ,
बाँध कर उन्हें अपनी कुण्डली में,
पीस डालो सम्पूर्ण कशेरुका,
और लील जाओ उनकी
सम्पूर्ण देह को ही,
धारण कर विकट रूप
अजगर का।
कृष्ण कहता है,
“बात पहले शान्ति
की हो,
और यदि बात न बने,
तो महाभारत रूपी क्रान्ति
आवश्यक है।"
❣️
जवाब देंहटाएंJai ho Nagraj🙏
जवाब देंहटाएंवाह
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