वो शख़्स नहीं एक धोखा था,
जिससे हमने इश्क़ किया,
वो गुज़रा हुआ एक मौक़ा था,
जिससे हमने इश्क़ किया।
वो पेड़ कि जिसके साये में,
साँसें मिलती रूहानी थीं,
वो अपनी जड़ों से टूटा था,
जिससे हमने इश्क़ किया।
जो पनघट अपने पानी से,
आँखों की प्यास बुझाता था,
वो कूप कभी का सूखा था,
जिससे हमने इश्क़ किया।
वो नींद कि जिसमे दिलबर के,
बस ख़्वाब दिखाई देते थे,
वो सिर्फ़ हवा का झोंका था,
जिससे हमने इश्क़ किया।
वो बज़्म जहाँ दिलवालों की,
महफ़िल का रंग निखरता था,
वो रंग बहुत ही फीका था,
जिससे हमने इश्क़ किया।
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