शब्द समर

विशेषाधिकार

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6.10.23

याद

याद तो याद ही है
जब-तब चली ही आती है।

असल में वह जाती ही नहीं है।
यहीं कहीं दुबकी रहती है,
मस्तिष्क के किसी कोने में,
और पाते ही अवसर,
और देखते हुए स्थिति,
निकल पड़ती है
कभी ठहाके लगाते,
तो कभी आँसू बहाते,

याद,
बड़ी नटखट है,
एकदम कृष्ण की तरह,
जब देखो सताती ही रहती है।

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