शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
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अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

17.3.23

पी पी सर के लिए...

वो शख्स नहीं सरताज था,
जिसपर दुनिया को नाज था,
सब सीखते अन्दाज़-ए-बयां जिससे,
उसका अलग अन्दाज़ था|

वो शिक्षक नहीं सर्वमान था,
जिसपर सबको अभिमान था,
सब पढ़ते थे ज़िन्दगी जिससे,
चलता-फिरता संस्थान था|


वह ख़ास नहीं बस आम था,
काफी बस जिसका नाम था,
मुश्किलें भी जिससे कतरा जातीं,
ऐसा उसका मक़ाम था|

आँखें सबकी हैं भरी हुई,
पलकों से बूँदें झरी हुई,
वो शख्स दुनिया से क्या गया,
दुनिया है जैसे मरी हुई| 

पीपी सर (बाबा) को कोटिशः प्रणाम और भावभीनी श्रद्धांजलि

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