वो शख्स नहीं सरताज था,
जिसपर दुनिया को नाज था,
सब सीखते अन्दाज़-ए-बयां जिससे,
उसका अलग अन्दाज़ था|
वो शिक्षक नहीं सर्वमान
था,
जिसपर सबको
अभिमान था,
सब पढ़ते थे
ज़िन्दगी जिससे,
चलता-फिरता
संस्थान था|
वह ख़ास नहीं बस
आम था,
काफी बस जिसका
नाम था,
मुश्किलें भी
जिससे कतरा जातीं,
ऐसा उसका मक़ाम था|
आँखें सबकी हैं
भरी हुई,
पलकों से बूँदें
झरी हुई,
वो शख्स दुनिया
से क्या गया,
दुनिया है जैसे
मरी हुई|
पीपी सर (बाबा) को कोटिशः प्रणाम और भावभीनी श्रद्धांजलि
क्यों चले गए सर?
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