शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

18.12.18

मैं हूँ यहाँ


मैं हूँ यहाँ
कि देखना चाहता हूँ मुस्कुराहट,
उन चेहरों पर भी,
जिन्हें ख़ुद से मुस्कुराने के लिए
बचपन से ही उठाना पड़ता है,
मैला, बोतलें, बोरियाँ, बेलन, बच्चे और थालियाँ।
जो होते हैं अनाम,
और बन जाते हैं
छोटू, लड़के और छोकरी।

मैं हूँ यहाँ
कि दिला सकूँ उन्हें
किताबें, बल्ले-गेंद और खिलौने।

मैं हूँ यहाँ
कि बिखेर सकूँ हँसी कपोलों पर।
मैं चिन्दियों में बिखरी खुशी को
पूरा पैरहन देना चाहता हूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें