मैं कहीं धँसता जा रहा हूँ
एक अतल गहराई में|
किसी ऐसी खोह में
जहाँ मेरी ही चीख़ें
मेरे कानों को फाड़ रही हैं|
आँखों के सामने एक गहरा सन्नाटा है,
ऐसी ख़ामोशी जो
निर्वात की तरह भीतर तक पसरती जा रही है|
ज़बान बोलती है,
तो शब्दों में खोखलापन दिखाई देता है|
मैं एक निहीर मूक प्राणी-सा लगने लगा हूँ,
जिसका कभी-भी-कोई-भी शिकार कर सकता है|
मन यह मानने को तैयार नहीं
पर दिल धड़क-धड़क कर
झकझोर रहा है मुझे,
बार-बार अपनी तीव्र गति से
समझा रहा है
सुनों!
तुम्हें समझना होगा,
स्वीकारना होगा,
अपने गले तक यह बात उतारनी होगी
कि तुम
पशुओं नहीं,
मनुष्यों के बीच रहते हो,
जहाँ कोई सुरक्षित नहीं है,
कोई भी मतलब,
कोई भी|
अपना खून भी नहीं
अपना निजी खून भी|
हमेशा की तरह शानदार 🙏💐
जवाब देंहटाएंtoo good
जवाब देंहटाएंhow to get my love back