मैं कुत्ता हूँ,
मैं हर उस पर भौंकूँगा,
जो लगेगा सन्देहास्पद मुझे।
जिसमें मिलेगी गन्ध,
मेरे स्वामी से घात की।
मुझे मेरे प्राण नहीं उतने प्रिय,
जितना कि निष्ठा और स्वामिभक्ति।
मैं करता हूँ वाष्पोत्सर्जीत ताप देह से
लपलपा कर जिह्वा अपनी,
परन्तु यही कर्म करने वाले मनुष्य
होते हैं अप्रत्यक्ष घातक मेरे
देव के हित।
अतः
सभाओं में पूँछ हिलाने का कार्य
मैं तुम्हें नहीं करने दूँगा।
यदि तुममें है सामर्थ्य तो
स्वीकारो बिरादरी मेरी,
चलो कुछ राष्ट्रहित भौंका जाय,
वह भी पूरी निष्ठा से।
यदि कर सकते हो,
तो आमन्त्रण स्वीकार करो।
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