मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ|
मैं भूल जाता हूँ, 
आदम-हौव्वा, एडम-ईव को, 
मनु-सतरूपा, और प्रारम्भिक जीव को|
मैं ख़ुद ही जन्मता हूँ, और मर जाता हूँ,
क्योंकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ| 
मैं नहीं मानता, 
कोई मालिक, कोई नौकर, 
कोई दाता, कोई चाकर 
मैं ख़ुद कमाता-खाता और उड़ाता हूँ 
क्योंकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ| 
होता होगा 
कोई राजा, कोई मन्त्री,
कोई रक्षक, कोई संतरी
मैं अपने आपको ख़ुद मारता और बचाता हूँ,
क्योंकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ|  
उड़ता होगा 
कोई जहाजों पर, कोई विमानों पर
कोई धरती पर, कोई आसमानों पर 
मैं अपने सपनों में ही उड़ता-उड़ाता हूँ 
क्योंकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ| 
मुझे क्या लेना 
किसी जंग से, किसी लड़ाई से,
किसी पर शासन से, किसी पर चढ़ाई से 
अपने शहर मैं ख़ुद रचाता-गिराता हूँ,
क्योंकि मैं रात में केवल इश्क़ करता हूँ| 
मैं दिन में भले नाचूँ 
मालिक के इशारों पर, साहबों की मारों पर
कुत्ते जैसी पुचकारों पर, उसी के जैसे दुत्त्कारों पर,
पर रात में सिंह सा दहाड़ता और हाथी सा चिंघाड़ता हूँ 
क्योंकि मैं रात में केवल इश्क़ करता हूँ|
होता होगा 
कोई प्रेमी, कोई सौदाई,
कोई वफ़ादार, कोई हरजाई 
अपनी वफ़ा पर मैं ख़ुद इतराता हूँ,
क्योंकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ|
करता होगा 
कोई आन्दोलन, कोई हड़ताल, 
कोई चोरी, कोई पड़ताल 
अपना हक़ मैं ख़ुद ही छीन लाता हूँ 
क्योंकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ| 
करता होगा,
कोई निकाह, कोई मज़ाक,
कोई फतवा, कोई तलाक
अपने नियमों का मैं ख़ुद विधाता हूँ 
क्योंकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ|
मरता होगा
कोई तन्हाइयों में, कोई रुसवाइयो में,
कोई उथलेपन पर, कोई गहराइयों में 
मैं अपनी महफ़िल बन खुद ही मुस्कुराता हूँ 
क्योंकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ|
वाकई मैं सब कुछ कुछ भूल जाता हूँ
दिन भर मरने के बाद 
जीने की कोशिश में लग जाता हूँ
शुरू कर देता हूँ अपनी प्रेम कहानी 
जिसका मैं ही होता हूँ राजा, मैं ही होती हूँ रानी, 
कर देता हूँ हवा हर ग़म को,
बदल देता हूँ ख़ुशी में मातम को 
अपने ही में सिमट,
अपने बाजुओं में कसके 
भर लेता हूँ बाहों में गहराई से धँस के 
इस प्यार को और ज़ोर-ज़ोर से दोहराता हूँ,
क्योकि मैं रात को केवल इश्क़ करता हूँ|  
