हे पथिक!
तू नहीं है निर्बाध
इस भव में,
न ही निर्विघ्न है
तेरा यह यज्ञ ही|
इस भव में,
न ही निर्विघ्न है
तेरा यह यज्ञ ही|
जल जायेंगे
हवन करते हुए ही
तेरे हाथ
क्योंकि
तेरी आहुतियाँ ही
कर देती हैं उत्पन्न
विकराल अनल ज्वाल|
हवन करते हुए ही
तेरे हाथ
क्योंकि
तेरी आहुतियाँ ही
कर देती हैं उत्पन्न
विकराल अनल ज्वाल|
तूने जुटाया जो साहस
चुनने को शूलपथ
उसमें तेरा रंजित होना
होता है स्वाभाविक ही|
चुनने को शूलपथ
उसमें तेरा रंजित होना
होता है स्वाभाविक ही|
तूझे होती है पीड़ा
होने पर आहत
विषमय शर-प्रहारों से
क्योंकि
द्विजिह्व भुजंग
होता ही है मात्र विषवमन हेतु|
होने पर आहत
विषमय शर-प्रहारों से
क्योंकि
द्विजिह्व भुजंग
होता ही है मात्र विषवमन हेतु|
नहीं है तेरा जीवन
कीट-पतंगों की भाँति निरर्थक
न ही तेरा मन
होने को भयभीत
तुच्छ बाधाओं से|
कीट-पतंगों की भाँति निरर्थक
न ही तेरा मन
होने को भयभीत
तुच्छ बाधाओं से|
अतः
तू गाण्डीव उठा
और कर निःशस्त्र जयद्रथ को विच्छिन्न
क्योंकि
पाषाण हृदयी को
मृदु वाणी से नहीं जीता जा सकता|
तू गाण्डीव उठा
और कर निःशस्त्र जयद्रथ को विच्छिन्न
क्योंकि
पाषाण हृदयी को
मृदु वाणी से नहीं जीता जा सकता|
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