शब्द समर

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10.11.14

दो सखियाँ

वर्तमान में भी अतीत की सुनहरी यादें हैं, दो सखियाँ. 
होते ही आँखें चार खुशियों की बरसातें हैं, दो सखियाँ. 
अपने मलिन चेहरे पर भी 
प्रसन्नता के भाव बिखेरने की प्रतिस्पर्धा होती हैं, दो सखियाँ. 
घर की गलियों से लेकर 
विद्यालय की एक-एक ईंट और दीवारों की यादें होती हैं, दो सखियाँ.
हो जाती है सुखी कुछ पल के लिए,
जैसे कि पीड़ा नाम की चीज़ कभी इन्हें छू ही न गई हो.
एक-एक पल को पूरी तरह से जी लेने की चाहत होती हैं, दो सखियाँ.
विविध भारती की तरह होती हैं वाचाल यंत्र
स्वयं के मनोरंजन का अथाह भण्डार हैं, दो सखियाँ.
बचपन से लेकर अभी तक के जीवन का
सिमटा हुआ इतिहास हैं, दो सखियाँ.
शताब्दियों पूर्व रहा होगा कोई राजा कभी
किन्तु वर्तमान में दुनिया के सबसे सुन्दर
अपने-अपने राजकुमार की सपना हैं, दो सखियाँ.
भूल कर अपना अथाह दुःख-सागर
इस पल को अपने धमनियों में सराबोर कर लेना चाहती हैं, दो सखियाँ.

सब कुछ तो अच्छा ही था
पर ये क्या
मनाये न माने,
थामे न थमे
ऐसे एक समन्दर का नाम हैं, दो सखियाँ.
पापी समय की निर्दयता
और कठोरता की मार हैं दो सखियाँ.
जिस पल मिलती हैं
उस समय की सबसे बड़ी सहेली हैं, दो सखियाँ.
लेकिन अंतिम घड़ी वही समय
दुष्ट और राक्षस बन जाता है
देखो तो कितनी बड़ी पहेली हैं, दो सखियाँ.

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