शब्द समर

विशेषाधिकार

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21.11.14

अमिट प्रेम














प्रेम नहीं होता आश्रित आयु पर,
वह होता है एक बार,
निभाता है साथ
तब तक भी जब तक
साथ होता है जीवन साथी
या बन जाय काल का ग्रास ही|
उसे नहीं होती अपेक्षा
जीवन की
न ही होता है भय
मृत्यु का|
प्रेम के लिए नहीं चाहिए धन,
न ही उसे है विश्वास
लेन-देन या व्यापार पर,
न ही कामना होती है
जीवन-मरण या मोक्ष की|
प्रेम को तो बस
एक दृष्टि ही चाहिए
जो हो अथाह,
अनंत समुद्र गहराई लिए,
उसे चाहिए सशक्त विश्वास
हिमालय की ऊँचाई की तरह|
थके-हारे जीवन पथ पर
जब कोई नहीं होता है
आस-पास,
जब दुत्कार देता है अपना ही रक्त
तब प्रेम माँगता है
एक कन्धा
जिसमे खो जाती हैं
सारी पीड़ा, सारी व्यथा,
मिलता है एक असीम आनंद,
लगता है सार्थक
जीवित होना|
लगता है पूर्ण जीवन
तब भी जब ज़र्ज़र
होता जाता है शरीर
और होने लगती हैं तैयारियाँ
भस्म करने को श्मशान में
जब जल जाती है सारी देह
गल जाती हैं हड्डियाँ,
किन्तु साथ रह जाता है
केवल और केवल

प्रेम|

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