जन अज्ञान, और तंत्र बेजान,
देखो टोपीधारी कैसे टोपी पहना रहे|
आम रह गये आम, वो लें गुठली के दाम,
टोकरे से घोषणा के रस टपका रहे|
कि भूख रही चीत्कार, करे 'विद्यार्थी' हाहाकार,
सैफई में ख़ान जी कमर मटका रहे|
दे के चाय की बहार, और दूध की फुहार,
मोदियापा कर पप्पू जी मल्हार राग गा रहे|
देखो टोपीधारी कैसे टोपी पहना रहे|
आम रह गये आम, वो लें गुठली के दाम,
टोकरे से घोषणा के रस टपका रहे|
कि भूख रही चीत्कार, करे 'विद्यार्थी' हाहाकार,
सैफई में ख़ान जी कमर मटका रहे|
दे के चाय की बहार, और दूध की फुहार,
मोदियापा कर पप्पू जी मल्हार राग गा रहे|
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