यह
वही समय है, जो शताब्दियों से प्रतिदिन इसी क्षण आता है| आज
वही रविवार है, जो वर्षों से निरंतर हर छः दिन पश्चात् आ जाता है| यह वही 1 जनवरी
है जो प्रत्येक 12 महीने पश्चात् द्वार खटखटाती है| यह
वही 17वाँ वर्ष है, जो प्रयेक 100 वर्षों की यात्रा कर कई पीढ़ियों के आवागमन का
दर्शक है| परिवर्तित हुआ है, तो मात्र सहस्त्र अंक 2000 का| हिन्दू वर्षानुसार
गिना जाय तो मात्र 57 वर्ष पीछे चल रहा है, ‘ईसवीय वर्ष’| ये सारे अंक आ-आ कर जा
चुके हैं| इन सभी अंको ने बहुत कुछ देखा, समझा और सुना
है| ये शास्त्रों, बाइबिल, क़ुरानों, गुरु ग्रन्थ साहेबों
के सबसे निकट के साक्षी हैं|
ये साक्षी हैं, इन संविधानों
के साथ मानव द्वारा किये गये हत्याओं के भी| ये साक्षी हैं, अनन्त समुद्र की
उत्ताल विनाशक कई सुनामियों के| ये प्रमाण हैं,
पृथ्वी की डगमगाहट से हुए यायावरों के विवशताओं की| इन्होनें
प्रस्तुत किया है साक्ष्य, कई बार तीव्र वायु वेग, अति वृष्टि और
दुर्भिक्षों से अनगिनतों संतापितों का| जब दिया होगा किसी रचनाकार ने पहला अंक 1|
अपने जन्म के उस काल का भी साक्षी है, यह अंक| उसके
पूर्व भी जीवन था, वह भी मनुष्य का, उस अनगिनत समय के भी साक्षी रहे होंगे, ये
आजन्मित अंक| 1 के पश्चात् कभी 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9
तक आये होंगे| सबके आगमन के अभिलेख हैं ये| 0 का आविष्कार तो बहुत बाद में हुआ| उस
प्रथम दिन से आज तक इस 1 का अगणित बार दोहराव हो चुका है|
1 से लेकर 9 तक की जितनी
भी प्राकृत संख्याएँ हैं, वे कभी भी किसी परिवर्तन की कारक नहीं बनती| हर बार
परिवर्तन करता है 0, जिसका अपना अकेले कोई अस्तित्व नहीं, कोई
मूल्य नहीं, किन्तु किसी भी अंक का वामांगी होते ही, उसकी गणना इतनी बढ़ा देता है
कि मनुष्य उस अधिकता की प्राप्ति के लिए विक्षिप्त हो जाता है|
0 भी एक प्रकार की भीड़
है, और मनुष्य भी| दोनों में अंतर यह है कि 0 जितना बढ़ता जाता है, उतना ही
शक्तिशाली होता है, किन्तु मनुष्य की भीड़ कई बार निरर्थक ही रह जाती है| इन भीड़ों
की महत्ता और शक्ति तब और बढ़ जाती है, जब इनका नेतृत्व करने वाला 1 इनके साथ होता
है| किसी भी 1 के पीछे जितने अधिक 0 होते हैं, वह एक उतना ही अधिक सामर्थ्यवान
बनता जाता है|
इस अतिआधुनिकता के समय में
कभी-कभी विचारता हूँ, वह अंक विहीन जीवन कैसा रहा होगा? आज
जब इन अंको का एक ही क्षण में अगणित बार उपयोग हो रहा है| ऐसी परिस्थिति में ये
अंक स्वयं की उपयोगिता पर इठलाते है, या बैलों की भाँति निरंतर जुतते रहने के कारण
क्षोभ हो रहा होगा? यह मेरे समझ से परे लगता है, किन्तु इन अंकों में इतनी शक्ति है, तभी
तो इन्होने मनुष्य को अपने लिए एक अलग भाषा का नामकरण करने के लिए विवश कर दिया|
‘गणित’ भाषा का जन्म मात्र
एक संयोग नहीं इन 0....9 जैसे महारथियों के साथ चलने की आवश्यकता है| यह इन 10
वीरों का पराक्रम या शौर्य ही है कि इनकी गूढ़ता को समझने के लिए मनुष्य ने संगणक, लघु
संगणक या गणक इत्यादि जैसे कई यत्रों का आविष्कार किया| इन यत्रों के आविष्कार में
भी इन्हीं महावीरों का योगदान रहा है| एक विशेष बात यह है कि इनकी अपनी कोई आकृति
नहीं है, ये निराकार हैं, जो जिस वस्तु में इन्हें देखना चाहे, ये उसी
में दिख जाते हैं| इनका किसी भी जीव या निर्जीव के साथ कोई भेदभाव नहीं है| ठोस, द्रव
यहाँ तक कि अदृश्य वायु के भी लिए बराबर की मात्रा दर्शाते हैं|
जब बात आती है, किसी
नवीनता की तो विचार करता हूँ, इसमें नूतन क्या है? ये अंक जो कल भी
मेरे साथ तन्द्रा विछोह से लेकर निद्रा प्रेम तक निरंतर गतिमान थे? व्यक्ति
जो कुछ भी करता है, वह इन अंकों के हस्तक्षेप के बिना संभव ही नहीं है| प्राच्य और
नवीन दोनों के मध्य वर्तमान का जो बंधन है, वह भी गणना से परे नहीं है| भविष्य
वक्ता हों, या भूत शास्त्री सब इन अंकों के दास हैं| सब बार-बार इन्हीं 0...9 तक
की परिक्रमा करते हैं| वृद्ध भूत हैं, जो वर्तमान से बहुत पूर्व में अस्तित्व में
आ चुके होते हैं|
ये अंक भी अब वृद्ध हो चुके
हैं, पश्चात् इसके भी कार्य इन्हीं के माध्यम से हो पा रहा है| मैं जब भी कोई
नवीनता खोजता हूँ, तो इन्हीं 0...9 के चारों ओर घूम कर रह जाता हूँ, फिर मुझे आभास
होता है कि इन अनंत गामियों के अतिरिक्त कुछ भी न तो नवीन है, न प्राचीन| ये सभी
सामूहिक रूप से अंत से अनंत की यात्रा पर हैं| ये तब भी नहीं रुकेंगे, जिस दिन
समस्त भू-मंडल का विनाश हो जायेगा| ये उस काल के साक्षी बनेंगे, और नई पीढ़ी को
अतीत के रूप में स्मरण कराते रहेंगे| ये आद्य से अंत तक के सबसे बड़े सहचर हैं| ये
एक-एक क्षण के साक्षी हैं| ये विघटित एकता के पर्याय हैं|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें