शब्द समर

विशेषाधिकार

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26.1.14

ये हवा जो चली है, महक लेने दो



ये हवा जो चली है महक लेने दो,
इसकी ख़ुशबू में धीमा ज़हर ना भरो.
लाखों जीते इसकी छुअन से यहाँ,
इसमें बिजली के कंपन का डर ना भरो.

कोई महलों में है, कोई फुटपाथ में,
जी रहें हैं सभी अपनी औक़ात में.
मत बनाओ झोपड़ियों पे ताजमहल,
अपने घर से किसी को बेघर ना करो.
ये हवा..................................

सबका दीन भी है, सबका ईमान है,
सबका अपना भी कोई एक भगवान् है.
इन कटारों में ज़ंग अब लग जाने दो,
अपने जंग में किसी की कबर ना भरो.
ये हवा...........................................

एक भटके हुए की, नज़र तुम बनो,
एक अँधेरे शहर की सहर तुम बनो.
ज़िंदगी है मिली सबको जी लेने दो,
किसी की जाँ को तुम उम्र-ए-बदर ना करो.
ये हवा................................................
 

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