शब्द समर

विशेषाधिकार

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5.9.13

मैं सम्पूर्ण तुम्हारा हूँ

देखो मैं लौट आया हूँ
ख़ुद-ब-ख़ुद,
पर तुम कहाँ हो?
 
तुम चाहते हो न
कि मैं तुम्हारे साये की तरह रहूँ?
तो लो अपने नस-नस का
क़तरा-क़तरा तुम में समाहित कर रहा हूँ.
सुनो मेरे क़रीब होकर भी
इतने दूर क्यों हो?
तुम्हारे होंठों के कमल पर
ये गोधूली का धुंधलका क्यों है?
तुम्हारे ये मृगनयन में
सागर क्यों छलक रहा है?

देखो मैं सम्पूर्ण आया हूँ
तुम्हारे ही पास
केवल तुम्हारे पास,
अब मेरे क़रीब किसी और की
परछाईं भी न पाओगे कभी.
बस एक बार अपने चेहरे पर
दीवाली का दिया जलाकर
इसे होली की भांति इंद्रधनुषी कर दो|

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