शब्द समर

विशेषाधिकार

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7.6.13

अतिरिक्त आदमी

दादा थे तब लाठी, दीदी हैं तब भी लाठी.
खादी थी तब भी लाठी, खाकी है तब भी लाठी.
पीठ थी तब भी लाठी, पेट है तब भी लाठी.
राज था तब भी लाठी, लोक है तब भी लाठी.
गोरे थे तब भी लाठी, काले हैं तब भी लाठी.
दाढ़ी थी तब भी लाठी, मूंछे हैं तब भी लाठी.
छोटे थे तब भी लाठी, बड़े हैं तब भी लाठी.
बाँझ थी तब भी लाठी, गर्भ है तब भी लाठी.
अंगूठा था तब भी लाठी, कलम मिली है तब भी लाठी.
गूंगा था तब भी लाठी, बोल फूटे तब भी लाठी.
अँधा था तब भी लाठी, दीख रहा है तब भी लाठी.
भूखा था तब भी लाठी, खाने लगा तब भी लाठी.
निःशक्त था तब भी लाठी, सशक्त हुआ तब भी लाठी.
निर्वस्त्र था तब भी लाठी, सवस्त्र हूँ तब भी लाठी.
आस्तिक था तब भी लाठी, नास्तिक हूँ तब भी लाठी.
घूंघट में थी तब भी लाठी, बाहर निकली तब भी लाठी.
पवित्र थी तब भी लाठी, लूट ली गई तब भी लाठी.
घर में सोया तब भी लाठी, पगडण्डी पर हूँ तब भी लाठी.
लाठी, लाठी, लाठी, लाठी,
सर से लेकर पाँव तक मुझको अब मिलती है लाठी.
दिन में लाठी, रात में लाठी, सुबह में लाठी, सांझ को लाठी,
बूढ़े-बच्चे, त्रिया-जवान सबको बस मिलती है लाठी.
जन्म में लाठी, जीवन में लाठी,
अब मेरा शव निकलेगा लगता है केवल खाकर लाठी.
लाठी, लाठी, लाठी, लाठी,
लाठी, लाठी, लाठी, लाठी.
मैं अन्य पुरुष हूँ, अतिरिक्त आदमी
जो नहीं है गिनती में
न मारने वाले की न खाने वाले की
कि कितनी मैंने खाई लाठी.
बस यही जाना मैंने कि बरस रही हैं
मुझ पर
लाठी दर लाठी,
लाठी दर लाठी.

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