शब्द समर

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16.12.12

क़िरदार

हमसाये को हमसाया बनाना नहीं आया
हमसे कोई क़िरदार निभाना नहीं आया।
हमसाये को हमसाया बनाना नहीं आया...

ग़ैरों का भी एहसान उठाते रहे लेकिन,
इंसान को हैवान बनाते रहे लेकिन,
हैवान को इंसान बनाना नहीं आया
हमसे कोई क़िरदार निभाना नहीं आया।
हमसाये को हमसाया बनाना नहीं आया...

लड़ते रहे अक्सर हम एक दूजे से,
लड़ाते रहे लोगों को अल्लाह और पूजे से,
सच्ची किसी को राह दिखाना नहीं आया,
हमसे कोई क़िरदार निभाना नहीं आया।
हमसाये को हमसाया बनाना नहीं आया...

ग़ैरों के जायज़ाद को हम लूटते रहे,
आपस में ‘'विद्यार्थी’ हम जूझते रहे,
बिगड़ा किसी का काम बनाना नहीं आया
हमसे कोई क़िरदार निभाना नहीं आया।
हमसाये को हमसाया बनाना नहीं आया...


कर दी हलाली हमने सारे अरमानों की,
लगा दी ढेर कई जगह क़ब्रिस्तानों की,
ज़ख़्मों पे मरहम लगाना नहीं आया,
हमसे कोई क़िरदार निभाना नहीं आया।
हमसाये को हमसाया बनाना नहीं आया...

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