शब्द समर

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9.12.12

चुनावी पहल

हुआ विधानसभा भंग
आया चुनावी पहल
किसका चमकेगा भाग्य
किसका होगा राज महल?

कौन करेगा राज देश पर?

किसकी होगी कुर्सी शाही?
कौन बनेगा अगला मंत्री?
कौन करेगा तानाशाही?
मिले गद्दी नेता जी को
कर रहे दिन-रात टहल
आया चुनावी पहल

नेता जी चले गाडी से

करने को अपना प्रचार
मैं भी आपका, दल भी आपका
कहने लगे ये बारम्बार
नेता जी की बातों से
सब सोचें होगा कुशल
आया चुनावी पहल

पिछले मंत्री जी आये

पिछली करतूति बताए
जो कुछ वे न कर सके थे
विपक्षी पर दोष मढ़ाए
'विद्यार्थी' जो भी कर सके थे
उसको गाते हर पल
आया चुनावी पहल

मत हमको दीजिये

काम हमसे लीजिये
हाथ जोड़ विनती कर कहते
हमको शरण में लीजिये
आपकी कुटिया हटाकर
बनवाऊंगा उसे महल
आया चुनावी पहल

हमारा यह देश

बन जायेगा स्वर्ग
सब को दूंगा सामान अधिकार
चाहे हो कोई वर्ग
कमी न होगी पानी की
बहाऊंगा सबतर 'गंगाजल'
आया चुनावी पहल

नेता जी ओझल हुए ऐसे

जैसे गधा के सर से सींग
फिर हिली कुर्सी
फिर आये हांकने डींग
इन दोगलों की बातों को
अब कर देंगे बेदखल
आया चुनावी पहल


यह कविता लगभग नौ वर्ष पुरानी है जब मध्यप्रदेश में चुनाव होने वाले थे तथा उसी समय मैंने कविता लिखने की शुरुआत की थी यह संभवतः मेरी तीसरी या चौथी रचना होगी.. छुट्टी होने के कारण सफाई करने की सोच रहा था उसी दौरान यह मिली. गुजरात में चुनाव हो रहे हैं मुद्दा ताज़ा दिखा इसलिए आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का साहस कर रहा हूँ. संतुष्ट तो नहीं कर सकता किन्तु थोड़ी सी सार्थकता देने का प्रयास है.

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