शब्द समर

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20.11.11

वासना का ज्वार

चला वासना का ज्वार, मिट रहा घर-बार
प्रेम का ये रूप विकराल होता जा रहा.
कहीं भंवरी का बुखार, कहीं मधुमिता का प्यार
बुढ़ापे में भी एन डी से कमाल होता जा रहा.
स्वप्न लखपति का पाल, कन्या चले ऐसी चाल,
कि नेताओं में काम का भूचाल होता जा रहा.
निज बनिता से दूर, मजे होते भरपूर,
'विद्यार्थी' कर्म इनका मकडजाल होता जा रहा. 

2 टिप्‍पणियां:

  1. sir...aachi kavita hai. intne kam shabdo mein aapne bahut kuch keh diya...per mujhe n d sa kamaal hota ja raha samajh mein nahi aaya.

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  2. बेटा! एन डी तिवारी का नाम सुना है न ये वही एन डी तिवारी है जिसे रोहित शेखर अपना पिता बता रहा है

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