शब्द समर

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5.10.10

भीड़


यहाँवहांजहाँतहां,
सब जगह लोगों का हुजूम है।
सड़क परखलिहान में,
सागर मेंरेगिस्तान मेंजाने मेंअनजान में,
जमा हैं कई लोंग समूह बनाकर।

घरबाहरसर्वत्रकिसी न किसी बहाने एकत्र,
कहीं भी कोई भी स्थान नहीं है ख़ाली।
पटा हुआ है पृथ्वी का एक -एक कोना भीड़ से।
रोज लाखों जन्मते हैं अस्पतालों मेंघरों में,
कई तो कहीं भी ।

कई अंकुरित होते हैं
भारतीय संस्कृति में पाप बनकर....
या तो जन्मते ही नहीं या मार दिये जाते हैं
आँख खोने के पहले,
नहीं तो शासन ने कर दिया है उपकार
खोलकर अनाथालय।

इन्हें दूसरों का पाप भी कहा जाता है
जिन्हेंमाना जाता है वासना का प्रतिफल,
दिन-रात जलती रहती है हर श्मशान कि धरती,
मरते हैं करोड़ों किसी न किसी बहाने
जिन्हें कर दिया जाता है आग के हवाले या
ज़मीदोज़ हो जाते हैं साढ़े तीन फिट ज़मीन के नीचे।

बंदूकों सेतलवारों सेआत्मदाह से अत्यचारों से ,
कईयों के तो प्राण निकल जाते हैं
रोटी कि बाट जोहते
पंचतत्व रोज बाँटते हैं और
रोज पा जाते हैं अपने अंश वापस ।

अस्पतालों के हर वार्ड में कराहते,
सिसकते मिल जाते हैं
कई लोग,
किसी को सरदर्द तो किसी को बुखार की,
हृदयरोगशर्करा की अधिकता,
से लेकर हर प्रकार के मरीज।

सरकारी अस्पतालों में तो ऐसा भी है
कि खाली नहीं मिलते बिस्तर मरीजों को।
किसी को उलटी-दस्त,
कोई डायरिया से त्रस्त ,
कोई मिर्गी से खाया गस्त,
लेकर तबियत पस्त,
पहुँचते हैं अस्पताल में प्रतिदिन।

बस मेंट्रेन मेंप्लेन मेंकार में,
साइकिल मेंकरते हैं सफ़र प्रतिदिन
कुछ ही लोग जितने थे एक दिन पहले।
तिथि मेंत्यौहार मेंमेले मेंबाज़ार में,
जंगल मेंउद्यान में,
शो रूम मेंदुकान में,
खड़े-बैठेहंसते-बोलतेमिल जाते हैं लोग।

लोग ही लोग।
तिराहे परचौराहे परतीर्थ मेंधर्मशाला
स्टेडियम मेंपाठशाला में,
हर जगह उतने ही लोग रहते हैं हर दिन।
शहरों के फुटपाथ पर ओढ़े हुए कम्बल
या नंगे बदन
सहन करते हैं कई लोग,
चमड़ी को जला देने वाली कड़ी धुप ,
मूसलाधार बारिश ओला और पला।

यह प्रकृति का दो रूप ही है कि
वी आई पी वातानुकूलित भवनों में बैठ कर भी
तड़पता है
और ये नंगा
खुले आसमान तले भी मस्ती में रहता है।

सब मानव भीड़ है,
कोई भी नहीं कह सकता
अपने को अकेला
क्योंकि वह भी किसी न किसी जगह
बन जाता है भीड़ का हिस्सा।

यह सिलसिला नहीं होगा कभी ख़त्म
क्योंकि यह प्रकृति का नियम है,
सृष्टि में संसार,
संसार में मानव।
मानव हर रोज उपजता है और
नष्ट होता है कीड़ों कि तरह ।
रोजहर रोजदिन प्रतिदिन । 

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