शब्द समर

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19.1.24

हमाम और ठण्ड


आज भोरे-भोरे हम टहलते हुए बाबू हनुमन्त सिंह के खेत की ओर पहुँचि गए| दूरिन से देखा कि बाबू साहब आलू की कियारियों के बीच केवल एक ठो जाँघिया पहिरे इधर-से-उधर पैकी नाधे हुए हैं| थोड़ा नगीचे पहुँचे, तो देखा कि बाल्टी में पानी भरा है, अउर दस-पन्द्रह मीटर दूरी पर उनका हरवाह जामवन्त कोल आगी बारे हुए है| हमारी अउर बाबू साहब के बीच हँसी ठिठोली चलती रहती है, तो हम पूछिन लिए, “का बात है लाल साहब, आजु कइसन महँगू धोबी की कुकुर नाई आगी-पानी के बीच में फेरी देइ रहे हैं, उहउ एकदम नागा रूप धरे नंग-झड़ंग खेत को हमाम बनाए हुए? मन्दिर निर्माण के लिए व्रत-उपवास कल्लिये का? आप तो देशद्रोही पार्टी कांग्रेस के समर्थक हैं? अब आपकी पार्टी हाईकमान के सामने का इज्जत रह जाएगी?

हमको समीप आता देख अब ऊ मेट्रो ट्रेन की गति पकड़े इधर-उधर दउड़ने लगे थे, पै हमारी इतनी बात सुनते ही उन्होंने हमें अइसे ताका, जैसे हम, हम नहीं, रंगा सियार की तरह, पत्रकारिता रुपी नाद में, देशभक्ति के चरस में रंगा हुआ सुधीर तिहाड़ी हैं, जो स्टेनगन की गोलियों की तरह उन पर एजेंडा आधारित सवाल दागे जा रहे हैं| उनकी आँखन की ज्वाला देखकर हम तनिक सहम गए, अउर आँख मारकर बोले, “अरे! हम तो मजाक कर रहे थे|”

ऊ बोले, “अब का बताएँ विद्यार्थी जी?” हम बोले, “तो झैं बताएँ|” तो ऊ मनुहार में बोले, “अरे नहीं अब आप ने पूछिन लिया है, तो बताए देते हैं|” अब उनकी गति मेमू ट्रेन की तरह हो गई थी, जो अपने गन्तव्य तक तीन दिनों की देरी से भी पहुँच जाए, तो यात्रियों का सौभाग्य माना जाता है| अपने हाथन की हथेलियों को मलते हुए, कभी छाती छुपाते, तो कभी जाँघ, अउ कभी दोनों कान| अपनी इन्हीं गतिविधियों को करते हुए ऊ बोले, “मान लीजिए कि हमको नहाना है|” अउर ई पानी ससुरा अन्टार्कटिका की बर्फ से भी अधिक ठण्डा है, देह में छुआते ही अइसा लगता है, जइसे कोई बरछी-बल्लम लेके हमारी छाती छेद रहा हो| अब नहाएँ तो कइसे?” हमने कहा, आप तो लाल साहब हैं, आपके लिए बरछी-बल्लम, तीर-तलवार की क्या औकात, देश का सारा इतिहास आपकी वीरता से भरा पड़ा है?” उन्होंने कहा, हथियारों की बात अलग है विद्यार्थी जी, ई ससुरा पानी है| हथियार होता, तो इतना कहने पर अब तक आपकी ही मुण्डी धरती माता को चूमती होती, पर ई ठण्डे पानी का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं|

हमने कहा, “आप तो हनुमन्त हैं, ऊपर सिंह अलग से| दो-दो उपाधियों से सुसज्ज्तित है आपका नाम| आपका हरवाह है, ऊ जामवन्त है| कहिये जामवन्त को चढ़ाए आपको झाड़ में और हरहरा लीजिए आप एक बाल्टी पानी|” ऊ बड़े ही निराश शब्दन में बोले, “ऊ त्रेता था महराज, जब जामवन्त के कहने पर हनुमान लला समुद्र के गरम-कुनकुना पानी को लाँघ गये, ई कलजुग है, यहाँ इस हनुमन्त सिंह को ये जामवन्त तो क्या, वो जामवन्त भी बोलें न, तब भी हम एतना ठण्डा पानी से नहाना तो क्या, झाड़ा फिरने के बाद सौंचें भी नहीं|”

हम उनसे तनिक दूरी बनाते हुए पूछा, तो आज...? ऊ हमारी बात समझि गये, समझते हुए बोलिन, सीक्रेट है|”

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