शब्द समर

विशेषाधिकार

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19.10.22

यह कौन है...?

यह कौन है?
जिसने चूम लिया मुझे चुपके से?
वह भी बिना मेरी सहमति या अनुमति के?

लेकिन मुझे क्यों अच्छा लग रहा है,
जब यह करता जा रहा है
प्रवेश वस्त्रों का भीतर,
और भरता जा रहा है गर्माहट
मेरे बदन के पोर-पोर में?
और यह गर्मी,
आहा! जैसे इसकी ही प्रतीक्षा थी मेरी देह को।


क्यों सूख रहे हैं होंठ मेरे
?
और क्यों रोयों में है सरसराहट भरती जा रही?
कटकटाते दन्त-पंक्तियों पर
कौन बिखेर रहा है चमक अपनी?
कौन है,
जो हाथों से कराता जा रहा है
अजब-अजब क्रियाकलाप?
क्यों चुँधिया जा रही हैं आँखें मेरी,
जब ताकती हूँ उसकी ओर?|

ओह! तो यह सूरज है?
जो शरद की गुलाबी शीत में,
गुनगुनी-सी धूप से सेंक रहा है देह मेरी।
तब तो स्वागत है तुम्हारा दिनकर।
आओ,
और बने रहो चारों ओर हमारे,
देते हुए पूर्ण गर्माहट
और
बिखेरते रहो उजाला
समूची सृष्टि में।

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