शब्द समर

विशेषाधिकार

भारतीय दंड संहिता के कॉपी राईट एक्ट (1957) के अंतर्गत सर्वाधिकार रचनाकार के पास सुरक्षित है|
चोरी पाए जाने पर दंडात्मक कारवाई की जाएगी|
अतः पाठक जन अनुरोध है कि बिना रचनाकार के अनुमति के रचना का उपयोग न करें, या करें, तो उसमें रचनाकार का नाम अवश्य दें|

6.1.15

नींद की ख्वाहिश

मेरी नींद दरख्तों के पत्तों में,
जंगल के झुरमुटों में,
आम के बगीचों में,
गुलाब के काँटों में,
बेरों और अमरबेलों में,
दुनिया से रुखसत हुई
रूहों की तरह
पाना चाहती है एक जिस्म
और खिलना चाहती है
कमल की तरह,
महकना चाहती है ग़ज़ल की तरह,
चहकना चाहती है परिंदों के झुण्ड में,
लटकना चाहती है बाल्टी बन
पानी के कुण्ड में|
पाना चाहती है लोरियाँ और थपकियाँ,
जिसमें खो जाती हैं सारी सिसकियाँ,
गुम हो जाती हैं सारी थकाने|
बनाना चाहती है प्यार का महल
किसी ख़्वाबगाह में|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें