यह कविता देश वर्ष पूर्व बिहार के एक विद्यालय में मध्यान्ह भोजन से हुए 50 से भी अधिक बच्चों की मौत के कारण आई भावनाओं से लिखी गई है|
आज शमशान मे
बच्चों का जमघट है बहुत!!
शायद किसी स्कूल
मे फिर खाना बँटा है!!
अब सुलाने के लिए
कोई अम्मा नहीं होगी परेशान,
स्कूल ने उन्हें
हमेशा के लिए सुला दिया है.
मैदान आज भी
बच्चों से भरा पड़ा हैं,
पर आज किलकारी
नहीं कोहराम मचा है.
मैदान में आग की
लपटें और घर में चीत्कार हैं,
बाबू-बाबू
चिल्लाती अम्मा की गुहार है.
अब कभी न जीम
पाएगा वह अम्मा के हाथ से,
किसी ने ऐसा
खिलाया कि कभी खाने लायक न छोड़ा.
इन लपटों में जल
रहे हैं कइयों हज़ार सपने,
खाने में प्रलय
आई बहा ले गई अपने.
श्रद्धांजलि
डूबते हुए भारत को...