शब्द समर

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21.10.11

मध्यस्थ

आईना मुझे दिखा, क्यों धड़कता है मेरा दिल हर किसी के लिए?
मैं खड़ा हूँ दो राहे पर,
मिला रहा हूँ हर किसी की  नज़र से नज़र. 
कोई कहता है मुझे एक जिंदादिल इन्सान,
किसी की नज़र में हूँ एक लोटा 
जो लुढ़क जाता है किसी भी दिशा में.
आईने!
दुश्मनों से भी कर लेता हूँ दोस्ती,
दोस्त हो जाते हैं खफा .
फिर बरसने लगते हैं अंगारे दोनों और से. 
क्योंकि 
दुश्मन नहीं आते बाज़ आपनी हरकतों से 
दोस्त भी कर जाते हैं किनारा 
और मैं बस यही कहता हूँ 
" हे इश्वर! इन्हें माफ़ करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं."
मैं जीना चाहता हूँ  जहाँ के लिए
और दुनिया मुझे बाँट रही है 
अपने-अपने मतलब से.
मंजिल है मुझे पता, 
रास्ता भी दिख रहा
मगर फितरत है कि हिलने नहीं देती 
और खड़ा रह जाता हूँ उसी जगह पर.
क्या हर संघर्ष करने वाला 
जो खड़ा है दो राहे पर
और कर रहा है अपना पल-पल समर्पित 
दूसरों के हित में
उसे फिर खानी पड़ेगी गोली किसी नाथूराम की?

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