एक
सबसे वफादार प्राणी
कुत्ता।
पाते ही आहट रात में
शुरू कर देता है अपनी
भौं-भौं।
यह जानकर,
कि जरूर आया है कोई
जो
मेरे स्वामी के लिए है
घातक।
वह नहीं सोचता कभी भी
कि उसकी इस भौं की ध्वनि से
धो लेगा अपने ही जीवन से हाथ
और नहीं लेता दम
तब तक
जब तक भगा न दे शत्रु को
या
तज न दे निज जीवन।
"स्वान निद्रा" रूपी आदर्श को
शास्त्रों ने भी दी है
विशेष मान्यता
अपने श्लोकों में।
कर्तव्य परायणता को
पहुंचाया है चरम पर भारतीय सिनेमा ने
फिल्म तेरी मेहरबानियां से।
नहीं पहुंचते कानून के हाथ जहां
वहां
पानी में भी डूबे अपराधी को लेता है पकड़
अपनी घ्राण शक्ति से।
किसी के भी एक टुकड़े पर
उठा लेता है जिम्मा दाता की सुरक्षा का
और
ले लेता है शपथ मन ही मन
बिना किसी ध्वज या धर्म ग्रन्थ के
और
करता है पूर्ण प्राण-प्रण से।
ज्योतिषियों की भांति,
करता है, भविष्यवाणी आपदाओं की
ऊं आं ऊं की कर्कश ध्वनि से
स्वान समाज एक साथ।
खाली कर जाता है मनुष्य
कई बार पाकर सूना घर
प्रत्यक्ष में निकटस्थ का देकर वास्ता
किन्तु
यह नहीं लांघता कभी
अपनी सीमा रेखा
जब तक आहट न पा जाय गृह स्वामी की।
पामेलियन, विलायती, जर्मन शेफर्ड,
शहरी और देसी कुत्ता
जना जाता है
इन प्रजातियों के नाम से।
शेरू, गबरू, कालू, झबरू,
ग्रामीण मालिकों से होता है नामांकित,
सोनू, मोनू, टॉमी, डॉगी
बड़े मालिकों के बच्चों की तरह
बड़ा कुता।
अपने नामकरण पर मुसकाता है
मन ही मन और सोचता है,
आज नाम में मैंने कर ली है,
बराबरी
और मेरा मालिक
करने लगा है मेरे जैसे काम,
पीकर शराब।
यानी मैं चार और मेरा मालिक
दो पैरों वाला
कुत्ता।
उच्चवर्गीय टॉमी,
खाता है ब्रेड, बिस्कुट, फल, साबूदाना की खिचड़ी
अपने मालिक के साथ मेहमान बनकर
और
नागार्जुन की कानी कुतिया
सोई रहती है चुल्हे में, भूखे पेट
अपने मालिक की तरह।
लेकिन एक दिन इसी ईमानदार की
उम्र ढली नहीं
कि
मार दिया जाता है
देकर धीमा ज़हर।
रोगी और पागल पर तो कर दिया जाता है
प्रहार निर्दयता से।
कुछ मरते हैं अपनी उम्र जीकर
और
मरणोपरान्त
नहीं नसीब होती उसे एक सुकून की मिट्टी भी।
फेंक दिया जाता है
सदैव मृत कुत्ते को सड़कों
पर,
प्रेमचन्द के दुखिया सा।
अनगिन वाहनों के चक्रों तले पिस कर
पा जाता है सद्गति,
अपने आजीवन वफादारी का।
औरों के मांस तो खा लेती हैं
गृद्धें
किन्तु
नहीं फटकतीं
इस अनोखे ईमानदार के पार्थिव के पास भी।
दुर्गन्ध से फट जाये भले नासिका,
या हो जाय वमन ही
किन्तु
नहीं लगाता कोई भी प्राणी अपना हाथ,
नहीं देता कन्धा इसकी वफादारी को।
इसके उद्धारक, छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े
या चींटयां भी चढ़ जाती हैं
भेंट वायु-गति के वाहनों की।
सड़क पर पड़ी उसकी लाश ,
रौंदाती जाती है लगातार
बसों से, ट्रकों से, मोटर साइकिल, कारों और कई वाहनों से
और पहुंच जाती है
पवित्र घर के आंगनों में,
छोटे-छोटे लोथड़ों के रूप में।
वाहनों के सहारे पहुंच जाता है इसका विक्षिप्त मांस
चारों दिशाओं में
और हो जाता है विलीन
पंचतत्व में पूर्णतः।
धीरे-धीरे
वसुन्धरा स्वतः ही समाहित कर लेती है
इसे अपने गर्भ में
यह हो जाता है दफन
बिना किसी कलमा या मंत्र के।
मरने के बाद
होता है घोर तिरस्कृत एक कुत्ता।
जीते जी लाख प्यार और सम्मान के बावजूद
मरता है एक कुत्ता
होती है मौत एक कुत्ते की ही।
तभी तो सब कहते हैं
तुझे कुत्ते की मौत मारुंगा।
किन्तु
कोई यह नहीं कहता
मैं
बनुंगा कुत्ते जैसा वफादार
और मरुंगा एक
कुत्ते की मौत।