शब्द समर

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30.8.25

मोर नहीं भए मोरे सँवरिया

भोर भयी घनश्याम न आए
बाट जोहत मोर बीती रे रतिया

किस सौतन संग रास रचायो
सुधि करि करि मोर बिहरे रे छतिया

मुझ बिरहन पर तरस न आई
ऐसी लुभा के गई रे सवतिया

रंग भी श्याम औ अंग भी कारो
साँवली सूरत मोहनी मुरतिया

माखनचोर ने हृदय चुरायो
मोर नहीं अब मोर सुरतिया

पीर हिया की कासूँ सुनाऊँ

मोर नहीं भए मोरे सँवरिया।

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