भोर भयी घनश्याम न आए
बाट जोहत मोर बीती रे
रतिया
किस सौतन संग रास रचायो
सुधि करि करि मोर बिहरे रे
छतिया
मुझ बिरहन पर तरस न आई
ऐसी लुभा के गई रे सवतिया
रंग भी श्याम औ अंग भी
कारो
साँवली सूरत मोहनी मुरतिया
माखनचोर ने हृदय चुरायो
मोर नहीं अब मोर सुरतिया
पीर हिया की कासूँ सुनाऊँ
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