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10.6.25

प्रेम-एक मानवीय अनुभव

 

प्रेम करना,
होना
या प्रेम में पड़ जाना,
नहीं है अनुचित या आपराधिक कृत्य
किसी भी दृष्टीकोण से|
यह सजह और स्वभाविक प्रक्रिया,
हो सकती है किसी को भी,
किसी से भी, कभी भी|

प्रेम है एक जटिल भावना,
जिसमें होती हैं सम्मिलित विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाएँ-
आकर्षण, लगाव और वासना,
साथ ही समावेश होता है इच्छा रूपी अभिलाषा,
एवं भावना व चेतना रूपी सम्वेदनाओं का|

प्रेम है,
एक मानवीय अनुभव,
जो व्यक्ति को व्यक्ति से जुड़ने में होता है सहायक,
और भरता है
आनन्द, प्रसन्नता व सन्तुष्टि का भाव|

जब किसी को देख, सुन कर भी
मन हो जाता है आल्हादित,
और नहीं जागती अन्य इच्छा कोई-
ऐसा प्रेम सन्तुष्टि-मार्ग का प्रेम होता है|
वह प्रेम,
पवित्र, निष्पाप, निःस्वार्थ, निष्काम और
निर्मल प्रेम होता है|
परन्तु,
जब येन, केन, प्रकारेण
प्रेमी को अपना लेने की इच्छा हो जाती है प्रबल,
साम, दाम, दण्ड, भेद होने लगता है प्रयोग-
यह तृषाग्नि धर लेती है रूप वासना का,
और नष्ट कर डालती हैं,
प्रेम की समस्त सम्भावनाओं का|

प्रेमी को प्राप्त करने की,
जैसे ही प्रज्ज्वलित है उत्कट भावना,
प्रेम वहीं हो जाता है धराशायी,
और पापमय वृत्ति,
दुरीच्छा लिए अपनी निरंकुशता के साथ  
जमा लेती है शासन अपना|

वासना,
रति, काम, भोग की लिप्सा लिए,
छल-छद्म, और कपट को शस्त्र बना,
क्रुद्ध भावों के साथ,
चल पड़ती है अपराधों की दिशा में,
और कर डालती है,
जघन्यतम दुष्कृत्य|

किसी को
पाने की इच्छा रखना,
नहीं है किसी भी प्रकार से दोषमय,
परन्तु उसके लिए दुर्योधनीय कृत्य
मानवीयता का उल्लंघन,
व अपराधों की चरम सीमा को प्राप्त कर जाना है|

अविवाहित वयस्कजनों!
यह विशेष सम्बोधन आपको है-

निःसन्देह आप पड़ सकते हैं प्रेम में किसी के भी,
और पाल सकते हैं स्वप्न आजीवन सह-गमन का,
आप वह कीजिए,
क्योंकि वह है आपका अधिकार|
जब आपके माता-पिता या अभिभावक जन,
किसी और से बाँध रहे हों बन्धन आपका,
आपकी अनिच्छा से,
तब आप कीजिए विरोध उनका सम्पूर्ण शक्ति से,
अड़ जाइये, हठ कर लीजिए,
मत कीजिए विवाह उनसे,
जिनसे आपकी नहीं है चाहत तनिक भी,
इसे आप अपना कर्तव्य भी मान सकते हैं|
यदि नहीं हो रहा सम्भव आपसे,
तो लीजिए सहयोग
सम्वैधानिक व प्रशासनिक शक्तियों का,
परन्तु विवाहोपरान्त,
अपने जीवन-संगी को,
मारिये मत, सताइए मत,
मत कीजिए प्रताड़ित उन्हें,
जो अब आपके सुख-दुःख के हो चुके हैं साथी
अन्तिम श्वास तक|
यदि नहीं हो रहा सम्भव सहचर,
तो निःसंकोच हो जाइये विलग एक-दूसरे से,
विवाहोपरान्त भी,
परन्तु  किसी अन्य की लिप्सा में,
अपने पति या पत्नी की हत्या तो मत कीजिए|
अपने परिजनों के कृत्य का दण्ड,
उन्हें क्यों देना,
जो आपसे पूर्व आपको जानते तक नहीं थे?
यह हत्या कोई दोष नहीं,
अक्षम्य अपराध है|

अभिभावक जन,
यह सम्बोधन अतिविशिष्ट है आपसे,
कि यदि आपकी सन्तान का
लगा है मन कहीं,
किसी और में,
वह है किसी से प्रेम में,
जो है आपकी इच्छा के विपरीत,
तो अपनी जाति, धर्म, वैभव, ऐश्वर्य,
के रूप में विद्यमान,
प्रतिष्ठा, परम्परा और अनुशासन की बलि
मत चढ़ाइए अपने बच्चों को|
आप मनाइये अपने मन को,
समझाइये स्वयं को,
और यदि नहीं मान रहे
आपके मन, आपकी आत्मा,
तो भय खाइये अपने ईश्वर से,
राष्ट्र के सम्विधान से,
कि किसी के जीवन का निर्णय लेना,
है बाहर आपके अधिकार क्षेत्र से|
आप स्वयं सोचिये,
जिन बच्चों को पाला है आपने,
अपना रक्त सींचकर,
क्या उनका बहता हुआ रक्त,
आपको सोने देगा सुख भरी नींद कभी? 

प्रेमियों,
आप हैं चाहे तरुण, कैशोर्य, युवा, प्रौढ़ा या जरावस्था में,
आपको प्रेम हो ही सकता है,
वह सम या विपरीत लैंगिक आकर्षण से,
पूर्वजों की सम्पत्ति से,
अपनी क्रय की हुई किसी वस्तु से
या इस जगत में अवस्थित किसी भी
ठोस, द्रव, वायु रूपी द्रब्य पदार्थ से|
परन्तु उसकी प्राप्यता हेतु
आप न करें,
घृणित कर्म कोई|
अपने प्रेम को कृष्णमय बनाएँ,
जिसमें मात्र-और-मात्र प्रेम ही हो सुवासित|

इस सुन्दर सृष्टि को बनाइए
योग्य जीवन के,
इसे प्रेम से अभिसिंचित कर,
स्वर्णिम व स्वर्गमय बनाइये,
इसमें अपराधों का विष घोलकर,
इसे नारकीय रूप देने से बचें,
कि मानव होने के नाते
यही है कर्तव्य हम सभी का|