शब्द समर

विशेषाधिकार

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25.6.24

आजकल तुम पीने लगे बहुत

आजकल तुम पीने लगे बहुत
कोई ग़म है, या रुमानियत है कोई?

बड़ी ख़ामोशी रहती है ज़ुबाँ पर
हमराज़ नहीं है, या रिवायत* है कोई?

नज़रें मिलाने से नज़र काँपती है
मुझे धोखा है, या असलियत है कोई?

हथेली पर तुमने लिखा कुछ ख़ून से
ये ख़त है, या वसीयत है कोई?

दूर रहने लगे हो अब तुम बज़्म से
डरते हो रक़ीब से, या ख़ासियत है कोई

सुना कि मय करता है दूर दर्द-ए-दिल
ये घुट के मरना है, या हक़ीक़त है कोई?

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