एक शायर आज समेट रहा है
कुछ पन्नों को
जो उसकी ज़िन्दगी के
हर एक हर्फ़ से हैं वाकिफ़|
वे पन्नें जिन्होंने दी थी जगह
उसके बिखरे हुए दिल को,
समेटा था अपने आगोश में
उसके जज़्बातों को,
उसके जज़्बातों को,
पी लिया था अपने सीने में
उसके हर एक ज़ख्मों को|
आज इन पन्नों से शायर की आशिक़ी
होती जा रही है और भी गहरी
क्योंकि अगर ये पन्नें न होते
तो शायद आज उसके मोहल्ले में
होते केवल उसके अफ़साने
और टपकने लगते अश्क़ उसकी वालिदा की आँखों से
लगातार|