हे झुरमुट!
क्या तुम्हें पता है
कितने कवियों का तुम अलंकार हो,
कितने प्रेमियों का हो अभिसार?
कितने लघु जीवों का हो तुम गाँव
कितने पथिकों की छाँव हो?
कितने आखेटकों की केन्द्रित लोचन हो
कितने विपत्त्कों की बने हो तुम संकट मोचन?
क्या तुम्हें पता है
कितने कवियों का तुम अलंकार हो,
कितने प्रेमियों का हो अभिसार?
कितने लघु जीवों का हो तुम गाँव
कितने पथिकों की छाँव हो?
कितने आखेटकों की केन्द्रित लोचन हो
कितने विपत्त्कों की बने हो तुम संकट मोचन?
मुझे नहीं पता
तुम्हें भान है भी कि नहीं
तुम्हारा अपना होना?
किन्तु
मुझे पता है
तुम जहाँ भी हो,
जितने भी हो,
तुम स्वयं एक दीर्घ संसार हो
तुम्हें भान है भी कि नहीं
तुम्हारा अपना होना?
किन्तु
मुझे पता है
तुम जहाँ भी हो,
जितने भी हो,
तुम स्वयं एक दीर्घ संसार हो